(This piece was originally published in English on November 25, 2016. Read the English version here.)
अज़रा एदनवाला
उम्र: 21
देश: अमेरिका / भारत
कुछ समय
पहले मैं साहियो नाम के एक संगठन से मुख्तलिफ हुई। उस समय तक मैंने अपने खतने के बारे में कभी सोचा नहीं था। सच कहु तो मुझे पता ही नहीं था की इसका मतलब क्या है। जब मैंने उन महिलाओं के लेखों को पढ़ा, जिनका खतना हुआ था, तब मुझे एहसास हुआ की इस भयानक परंपरा का एक शिकार मैं भी थी। मैंने तो बस इस याद को अंतर्मन में दबा दिया था, क्यूंकि मैं नहीं जानती थी की ये परंपरा कहाँ से आयी और इसका मतलब क्या है।
मैं शायद 5 या 6 साल की थी। अपने परिवार के साथ छुट्टी पर थी। गुजरात में कोई इलाका था, जहाँ तक मुझे याद है। इसके अलावा और कुछ याद नहीं, सिवाय दर्द से भरे कुछ छितरे-बिटरे पलों की।
मुझे एक गंदे से बाथरूम में ले जाया जाना याद है, साथ में एक पुरूष या एक महिला थीं, सफ़ेद कपड़ों में। मुझे कैंची याद है, और मुझे खून देखना याद है। मुझे रोना याद है। क्योंकि मेरे जननांगों पर एक पट्टी लगाई गई थी। मुझे याद नहीं है कि किसी ने मुझे बताया हो, कि मेरे साथ अभी यह सब क्या हुआ था या क्यों हुआ था। सब कुछ हमेशा की तरह चलता रहा, मानो कुछ घटा ही न हो। और मैंने भी उसे मान लिया, क्यूंकि मुझे यह पता ही नहीं था की मेरे शरीर के साथ क्या किया गया है।
वैसे तो मेरे खतना ने न ही मेरे मन पे कोई गहरी छाप छोड़ी है, न ही मेरे जीवन जो किसी तरह बदला है।
हालांकि जो चीज़ मुझे खुरेदती है वह यह है की आखिर ये शरीर मेरा है, और किसी को भी इसे बदलने का कोई भी अधिकार न तो कभी था, न है। खासकर वैसे हानिकारक बदलाव जो “जैसे चलता है, वैसे चलने दो” की सोच के साथ आएं।
तीन साल पहले मैंने अपना पहला टैटू करवाया था। जब मेरे एक रिश्तेदार ने मेरे शरीर पर इस टैटू को देखा, तो उन्होंने कहा, “तुम मुस्लिम हो। और हमारा धर्म यह बताता है कि शरीर को ठीक उसी तरह अपनी कब्र में लौटना चाहिए, जैसा की वह माँ की कोक से निकला था। दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो हमें अपने शरीर में कोई बदलाव नहीं करना चाहिए और इसे वैसे ही स्वीकार करना चाहिए जैसा की हमें अल्लाह ने दिया है। अगर ऐसा है, तो मेरे गुप्तांगों को क्यों काट दिया गया? यह कैसा पाखंड है?
कोई भी धर्म सिर्फ अपने सुविधानुसार अपने नियम नहीं बना सकता। हमें यह समझना होगा की धर्म आखिर हमीं ने बनाया है, और हमें उन रीती-रिवाज़ो का पालन करना छोड़ना होगा जो परंपरा के नाम पर चलती आ रही है।
हम एक आधुनिक समाज में रहते हैं, और जहां हम अभी हैं उस जगह पर हम इसलिए पहुँचे हैं क्योंकि हमने परिवर्तन को अपनाया। महिला जननांग खतना इस्लाम में एक महिला के आस्था को निर्धारित नहीं कर सकता है। मुझे यह प्रथा बड़ी छिछली लगती है, और मुझे नहीं लगता कि किसी को भी इस प्रथा का पालन करना चाहिए, विशेष रूप से छोटे बच्चों को, जिनको पता ही नहीं है कि उनके साथ क्या हो रहा है।
हो सकता है की खतना का मुझपर ज़्यादा गहरा असर नहीं पड़ा है, लेकिन ऐसी बहुत सी महिलाएं है जिन पर असर हुआ है। प्रत्येक महिला को अपने शरीर पर अधिकार होना चाहिए क्योंकि ऐसे भगवन में विश्वास रखने का कोई मतलब नहीं है जो जाहिर तौर पर ऐसी भयानक और अमानवीय प्रथा का समर्थन करते हैं।